MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।

उत्तर -

समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तन
(Changes in Society and Religion)

 

परिवर्तन प्रकृति का नियम है। विभिन्न समाजों में यद्यपि परिवर्तन की प्रकृति, दिशा, गति और ढंग चाहे भिन्न-भिन्न रहे हों, लेकिन समाज में परिवर्तन अवश्य हुए हैं। समाज में होने वाले परिवर्तनों को हम कई दृष्टियों से देख सकते हैं।

(1) सामाजिक जीवन में परिवर्तन - सामाजिक जीवन के अनेक पक्ष हैं, जैसे— परिवार, विवाह, जाति प्रथा, रीति-रिवाज आदि। अब हम इनमें होने वाले परिवर्तनों पर दृष्टिपात करेंगे-

(अ) परिवारों में परिवर्तन - विश्व के समाजों में सदस्यों की संख्या के आधार पर दो प्रकार के परिवार पाये जाते हैं— संयुक्त परिवार एवं एकाकी परिवार संयुक्त परिवारों में तीन - चार पीढ़ियों के सदस्य साथ-साथ रहते थे, साथ-साथ भोजन एवं पूजा करते थे और उनकी सम्पत्ति सामूहिक होती थी। सबसे अधिक आयु का पुरुष सदस्य इन परिवारों का मुखिया होता था, वह अन्य सदस्यों पर नियन्त्रण रखता था एवं परिवार का संचालन करता था। समाज की इकाई व्यक्ति नहीं, परिवार होता था। परिवार के प्रत्येक सदस्य के मन में व्यक्तिवाद के स्थान पर समष्टिवाद की भावना विद्यमान रहती थी, किन्तु वर्तमान समय में संयुक्त परिवारों की संरचना और कार्यों में कई परिवर्तन आ रहे हैं। आजकल संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है और उनके सथान पर एकाकी परिवार बन रहे हैं। यदि कहीं संयुक्त परिवार विद्यमान भी हैं तो उनमें पूर्व के समान परिवार के मुखिया का कठोर अनुशासन ढीला हो गया है। वृद्ध लोग युवाओं से भी सलाह करने लगे हैं एवं स्त्री-पुरुष की समानता का विचार भी पनपा है। रूढ़िवादिता कम हुई है।

विश्व के अधिकांश देशों में आज एकाकी परिवारों का बाहुल्य है। ये परिवार अधिकतर पुरुष प्रधान होते हैं। स्त्रियों को सम्पूर्ण विश्व में पुरुषों की अपेक्षा हीन माना जाता रहा है लेकिन आज इन परिवारों में भी स्त्रियाँ अपनी स्थिति को ऊँचा उठाने के लिये संघर्षशील हैं। इसके अतिरिक्त परिवार में युवाओं और बच्चों का महत्व बढ़ता जा रहा है। परिवार का प्रत्येक सदस्य आज आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है और अपने व्यक्तित्व का अधिकतम विकास करना चाहता है।

प्राचीन काल में परिवार अनेक कार्य करता था, लेकिन शनैः-शनैः परिवार के कार्य अन्य संस्थाओं ने ले लिये हैं, जैसे- भोजन के लिये होटल, कपड़े धोने के लिये लाण्ड्री, मनोरंजन के लिये सिनेमा, क्लब, शिक्षा हेतु विद्यालय, यहाँ तक कि यौन तृप्ति भी परिवार के बाहर भी हो सकती है। इसी संघर्ष में कुछ लोग यहाँ तक कहने लगे हैं कि परिवार का भविष्य अन्धकार में है। इसके अतिरिक्त नातेदारी का महत्व भी कम होता जा रहा है।

(ब) विवाह में परिवर्तन - परिवार से सम्बन्धित संस्था विवाह में भी अनेक परिवर्तन दिखाई देते हैं। पहले जीवन-साथी का चुनाव माता-पिता एवं नातेदारों के द्वारा किया जाता था। आजकल अधिकांश देशों में लड़के-लड़कियाँ अपनी इच्छा से एवं अधिकतर प्रेम-विवाह करते हैं। भारत में बाल विवाह की प्रथा थी, अपनी जाति या उपजाति में विवाह करने की प्रथा थी तथा विवाह सम्पन्न करने में अनेक रूढ़ियों का पालन किया जाता था। आजकल इन सब स्थितियों में परिवर्तन हो रहा है। आजकल भारत में भी विधवा पुनर्विवाह कर सकती है, पत्नी पति को तलाक दे सकती है तथा उसके लिये अब अपने पति को परमेश्वर मानना आवश्यक नहीं है। पश्चिमी देशों में तो विवाह, तलाक और पुनर्विवाह एक खेल बनकर रह गया है। भारत में तो यद्यपि अभी भी यौन नैतिकता का बहुत महत्व है, लेकिन विदेशों में बहुत कम होता जा रहा है।

(स) जाति-व्यवस्था में परिवर्तन - यद्यपि जाति, प्रजाति एवं जन्मजात भिन्नतायें विश्व के अनेक देशों में पाई जाती हैं लेकिन चरम रूप में जाति प्रथा भारत की विशेषता है। जाति प्रथा में विवाह, खान-पान, व्यवसाय, उच्चता, निम्नता, विशेषाधिकार, निर्योग्यतायें, अस्पृश्यता आदि बहुत से विचार जुड़े हुए थे। भारत की हवा में भी जाति - प्रथा बसी हुई थी। लेकिन आज इस शक्तिशाली प्रथा में महत्वपूर्ण परिवर्तन होते जा रहे हैं। निम्न जातियों को संविधान में विशेष अधिकार दिये गये हैं। अतः वे विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रही हैं। ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा कम होती जा रही है। खान-पान और व्यवसाय पर प्रतिबन्ध के नियम ढीले होते जा रहे हैं। आजकल हमें अन्तर्जातीय एवं कभी - कभी अन्तधार्मिक विवाह होते हुए भी दिख जाते हैं।

जाति प्रथा से जुड़ी हुई एक अन्य प्रथा - जजमानी व्यवस्था — जो कि भारतीय ग्रामों की मुख्य विशेषता रही है और जिस प्रथा के द्वारा विभिन्न जातियाँ एक-दूसरे को अपनी सेवायें प्रदान करती हैं, टूटने लगी है। इसका मुख्य कारण औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं द्राव्यिक अर्थव्यवस्था है।

(द) रीति-रिवाजों में परिवर्तन - प्राचीनकाल में लोग विभिन्न पक्षों, जैसे-परिवार, विवाह, जाति, धर्म आदि से सम्बन्धित रीति-रिवाजों का कठोरता से पालन करते थे, लेकिन आज शिक्षा के प्रसार, नवीन जागृति, विज्ञान के विकास के प्रभाव के कारण रूढ़िवादिता एवं कट्टरता कम होती जा रही है।

(2) आर्थिक जीवन में परिवर्तन - परम्परागत रूप से कृषि हल और बैल की सहायता से की जाती थी। कृषि के औजार खाद एवं बीज उन्नत प्रकार के नहीं होते थे, अतः प्रति एकड़ उत्पादन कम होता था, किन्तु वर्तमान समय में कृषि आधुनिक ढंग से की जाने लगी है। हल और बैल के स्थान पर ट्रैक्टर्स का प्रयोग होने लगा है। सिंचाई के लिये ट्यूबवैल्स, उन्नत खाद और बीजों का प्रयोग बढ़ रहा है। संक्षेप में कह सकते हैं कि कृषि मशीनीकृत होती जा रही है। साथ ही, फैक्ट्री प्रणाली, औद्योगीकरण एवं आधुनिकतम मशीनों का आविष्कार एवं प्रयोग आर्थिक क्षेत्र में बढ़ता जा रहा है। उपभोग की नित नवीन वस्तुएँ बाजार में आ रही हैं। विज्ञापनों का प्रभाव आज अत्यधिक है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा विभिन्न देश आपस में सम्बद्ध हो गये हैं। परिणामस्वरूप, नई-नई आर्थिक और व्यावसायिक संस्थाओं का जन्म एवं विकास हुआ है तथा सामाजिक गतिशीलता बढ़ती जा रही है। धन का समाज में सर्वोपरि मूल्य माना जाने लगा है।

(3) राजनैतिक जीवन में परिवर्तन - समाज में न्याय, प्रशासन एवं राजव्यवस्था में भी अनेक परिवर्तन हुए हैं। विश्व के सभी देशों के लोगों में राजनैतिक जागरूकता बढ़ती जा रही है। सभी वर्गों के लोग राजनैतिक शक्ति प्राप्त करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। इस प्रवृत्ति के कारण साम्प्रदायिकता, जातिवाद, प्रजातिवाद, प्रादेशिकता तथा गुटबन्दी बढ़ती जा रही है।

प्रजातान्त्रिक शासन व्यवस्था को सर्वोत्तम पद्धति मानकर अनेक देशों के लोग आन्दोलनरत हैं, जैसे- रूस, नेपाल, पूर्वी यूरोप के देश आदि। भारत में भी आजादी के बाद प्रजातान्त्रिक शासन-पद्धति को अपनाया गया है। इसके अतिरिक्त भारत में राजनैतिक क्षेत्र में ग्राम पंचायतें बहुत प्राचीन काल से ही विद्यमान रही हैं लेकिन आजादी मिलने के बाद इन पंचायतों का पुनर्गठन किया गया। अब इन पंचायतों में नेतृत्व युवा पीढ़ी के हाथ में आ रहा है। उसमें परिवार, जाति, वंश, भूस्वामित्व सम्पत्ति का महत्व कम हुआ है। अब व्यक्तिगत गुणों को अधिक महत्व दिया जाता है। निम्न जातियाँ एवं स्त्रियाँ भी पंचायत के माध्यम से ग्रामीण न्याय एवं प्रशासन में भाग लेने लगी हैं। इस प्रकार राजनैतिक क्षेत्र में परिवर्तन आने लगा है।

(4) शैक्षणिक जीवन में परिवर्तन - प्राचीन काल में शिक्षा का महत्त्व अपेक्षाकृत कम था। विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा पर बहुत कम ध्यान दिया जाता था, परन्तु आज समाज बदल रहा है। लड़के-लड़कियाँ सभी जातियों और वर्गों के लोग हर प्रकार की शिक्षा. अपनी सामर्थ्यानुसार अधिकाधिक ग्रहण कर रहे हैं। आर्थिक प्रतिस्पर्धा के बढ़ जाने के कारण ऐसा करना स्वाभाविक भी है।

(5) धार्मिक जीवन में या धर्म में होने वाले परिवर्तन - सम्पूर्ण समाज में धर्म का विशेष महत्व रहा है। धर्म का अर्थ है — किसी पारलौकिक शक्ति में विश्वास, जो कि सृष्टि का संचालन एवं नियमन करती है। धर्म के साथ नैतिक विचार, कर्त्तव्य, कर्मकाण्ड, धार्मिक क्रियायें, पूजा-पाठ आदि जुड़े हुए हैं। धर्म का समाज में बहुत अधिक महत्व रहा है। यह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान रहा है। धर्म के द्वारा व्यक्ति सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा पाता है तथा जीवन-यापन को सरल बनाने के लिये धर्म से उसे विशेष सम्बल प्राप्त होता है।

भारत में तो धर्म का विशेष महत्व रहा है। भारतवासियों का सम्पूर्ण जीवन ही धर्म द्वारा संचालित होता है। व्यक्ति के सभी कर्त्तव्यों को धार्मिक आधार प्रदान किया गया है, उदाहरण के लिये, ग्रामवासी फसल बोने, काटने, जन्म, विवाह, मृत्यु एवं अन्य उत्सवों के अवसर पर अनेक धार्मिक क्रियायें करते हैं। आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का मूल मन्त्र है।

लेकिन वर्तमान समय में बढ़ती हुई शिक्षा, विज्ञान का विकास, सन्देशवाहन और यातायात के साधनों का विकास, औद्योगीकरण एवं नगरीकरण आदि के कारण धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो रहे हैं। नवीन विचारों के कारण रूढ़िवादिता समाप्त होती जा रही है। धर्म-निरपेक्षीकरण की प्रक्रिया के कारण धार्मिक भेदभाव कम होते जा रहे हैं। धार्मिक क्रियाओं, पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, संस्कारों एवं त्यौहारों आदि की महत्ता कम हो गई है। धर्म का संक्षिप्तीकरण हुआ है और धार्मिक क्रियायें शीघ्रता से और छोटे रूप में सम्पन्न की जाने लगी हैं। प्रमुख रूप से युवा पीढ़ी का धर्म में विश्वास कम हुआ है। युवा लोग जो थोड़ी-बहुत धार्मिक क्रियायें करते हैं वे इस कारण क्योंकि उनके पूर्वज ऐसा करते थे, उनका अपना विश्वास इसमें कम होता है। मन्दिर, मस्जिद एवं गुरुद्वारों में जाने वाले लोगों की संख्या घटती जा रही है। धर्म की व्याख्या अब लौकिक व तार्किक आधार पर होने लगी है। धर्म के अनुसार, कुछ वस्तुओं को पवित्र एवं अपवित्र माना जाता था, लेकिन अब पवित्रता, अपवित्रता के विचार समाप्त हो रहे हैं।

'धर्म के साथ नैतिकता भी जुड़ी होती है। धार्मिक जीवन के साथ नैतिक जीवन में भी *परिवर्तन हो रहा है। आज व्यक्तियों का नैतिक स्तर गिरता जा रहा है। समाज में तरह-तरह के अपराधों में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जैसे—आपस में लड़ाई-झगड़ा, जातियों में संघर्ष, प्रजातियों में संघर्ष, मार-पीट, मद्यपान, जुआ, गबन, रिश्वतखोरी तथा यौन सम्बन्ध इत्यादि।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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